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{Ghisa Panthi Ashram Samalkha Panipat}


( Satguru Ratiram Ji Maharaj Gudari Wale Moji Ram )



{घीसा पंथी आश्रम समालखा पानीपत (सतगुरु रति राम जी महाराज गुदड़ी वाले मौजी साहेब}

सत साहेब जी.🙏

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अक्टूबर तालिक 2025

October Table
सत्संग की तारीख
Date Of Satsang

अक्टूबर 5, 2025,रविवार(शुक्ल चतुर्दशी)

पूर्णिमा की तारीख
DATE OF PURNIMA

अक्टूबर 6, 2025, सोमवार (आश्विन पूर्णिमा )

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मंगलाचरण (स्वामी जीतादास जी कृत)

स्वामी जीतादास जी कृत की वाणी में से मंगलाचरण

प्रत्येक शुभ कार्य को प्रारम्भ करते समय बन्दीछोड़ गरीबदास साहिब जी की वाणी में से मंगलाचरण उच्चारण करना चाहिए। इसके उच्चारण करने से प्रत्येक शुभ कार्य खुशी-भरपूर पूर्ण होता है।

मंगल-1 (स्वामी जीतादास जी कृत)

हे गुरु बक्शों न अपनी याद, याद बिना हम दुःखी। जैसे दुहागिन नारि, पिया बिन ना सुखी।। सूरां बिन सूनी धाड़, फौज राजा बिना। ऐसे जन्म निकारथ जाय, साहेब थारे नाम बिना।। बाड़ बिहूना खेत, सबज हय चरें। जल बिन तड़फे मीन, पपिहा पयासे मरे।। ऐसे जीतादास आधीन, आस थारी करें। साहेब धीसा हो बंदी छोड़ कारज तुम्हे से सरें।।

मंगल-2 (स्वामी जीतादास जी कृत)

मन मगरा मस्ताना जपें नहीं जाप को। राम नाम दिया छोड़, दौड़ चला पाप को।। वचन न माना सत्य कुढ़ाला, जा फंसा। भोगे है। अपने भोग कर्मो के, बस पड़ा।। घीसा सन्त दयाल गुरूं, हेला दे रहें। आन कटाओ कोई पाप, कुल्हाड़ा गुरु ले रहें।। जीतादास आधीन दुहाई, दे रहें। आन पियो कोई साध, अमर प्याला ले रहें।।

मंगल-3 (स्वामी जीतादास जी कृत)

मंगल-3 दीन के दयाल भक्ति वर दीजियों। खाना जाद गुलाम अपना कर लीजियों।। खाना जाद गुलाम तुम्हारा मै हूँ सही। मेहरबान महबूब जुगन जुग पत रही।। मैं बांदी का जाम गुलाम, गुलाम गुलाम हूँ। खड़ा रहूं दरबार सो आठों याम हूँ।। सेवक तलब दीदार तुम्हारे दर कूक ही। औगुन अनन्त अपार पड़ी मोहे चूक ही।। मैं घर का बांदीजात अर्ज मेरी मानियो। जन कहते है "दास गरीब" अपना कर जानियों।

मंगल-4 (स्वामी जीतादास जी कृत)

मंगल - 4 अवगुण हारा मैं हूँ जन थारा। अवगुण माफ, करो जी करतारा।। टेक ।। पूत कपूत बहुत अलिहारा, मात पिता न तो भी प्यारा। हाग्या मूता सब धो डारा,ऐसा हूँ गुरू मै बालक तुम्हारा।। कामी क्रोधी मैं तो लोमी हूँ लालची, अवगुण का मेरा तन-मन सारा। शरण पड़े की गुरू लाज राखियों, ऐसे हो तुम सिरजन हारा। संकट मोक्ष युगा युग किन्हे, अब कै तो भर लियो जहाज हमारा। युग-युग दया करी दासों पर, ऐसे हो साच्चे करतारा।। मैं पापी तुमने डुबत उबारा,कब तक गुण गांऊ मै तुम्हारा। घीसा संत सवेरा सुनियों, कूक रहा जन जीता थारा।।

मंगल-5 (स्वामी जीतादास जी कृत)

आय पड़ा हूँ मैं शरण तुम्हारी,गुनाह तो मेरी धोये सरेगी गिरधारी (टेक) बहुत से अवगुण करे युंगा-युंगा से, तकी पराई नारी चोरी जारी ये बनियाई, जान बहुत सी यो मारी।। मान बढ़ाई यो डिम्म हमार, भर रही सकल विकारी। तुम्हारे चान्दनें में देखन लगा, गुनाह हुई बड़ी मारी।। बहुत से पाप किये हे मेरे दाता, तुम्हारी भक्ति ना धारी। सभी कुटिलता है घट अन्दर, मंसा तुमने सुधारी।। केवल रूप वृन्दावन स्वामी, चरण कवंल बलिहारी। जन अपने पे कृपा करके, दुविधा दूर बिडारी।। भवसागर में मेरी नावं पड़ी है, पेल उतारो गुरू पारी। धीसा राम अरज जीता की, जन अपने को लियो न उमारी।।

 Last Date Modified

2024-12-18 11:36:16


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